Oct 28, 2016 - Explore Dainik Manas's board "TEACHERS DAY SANSKRIT SHLOKAS GURU MANTRA – गुरु वंदना या गुरु मन्त्र शिक्षक दिवस संस्कृत श्लोक", followed by 7729 people on Pinterest. तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु ॥ कान्तेव चापि रमयत्यपनीय खेदम् । दाने नैव क्षयं याति विद्यारत्नं महाधनम् ॥ ज्ञानमय, नित्य, शंकर रूपी गुरु की मैं वन्दना करता हूँ, जिनके आश्रित होने से ही टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र वन्दित होता है॥3॥ श्लोक: श्रेष्ठानि कन्यागोभूमिविद्या दानानि सर्वदा ॥ अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ॥ He is the cause of all the causes, the most superior, Parmatma, Para-Brahman and also known as Maryada-Purushottam. गुरु ने साधे जगत के, साधन सभी असाध्य। गुरु-पूजन, गुरु-वंदना, गुरु ही है आराध्य।। गुरु से नाता शिष्य का, श्रद्धा भाव अनन्य। पढनेवाले को मूर्खत्व नहि आता; जपनेवाले को पातक नहि लगता; मौन रहनेवाले का झघडा नहि होता; और जागृत रहनेवाले को भय नहि होता ।, अर्थातुराणां न सुखं न निद्रा कामातुराणां न भयं न लज्जा । Click here for instructions on how to enable JavaScript in your browser. विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः । लक्ष्मीं तनोति वितनोति च दिक्षु कीर्तिम् तथा वेदं विना विप्रः त्रयस्ते नामधारकाः ॥ सुख की ईच्छा रखनेवाले ने विद्या की आशा छोडनी चाहिए, और विद्यार्थी ने सुख की ।, ज्ञानवानेन सुखवान् ज्ञानवानेव जीवति । अवधीरणा क्व कार्या खलपरयोषित्परधनेषु ॥ keep doing good work, Thank you very much isne mera Kam asan kar diya. कांचनमणिसंयोगो नो जनयति कस्य लोचनानन्दम् ॥ योग्य समय आने पर ऐसी विद्या विद्या नहीं और धन धन नहीं, अर्थात् वे काम नहीं आते ।. आरोग्य, बुद्धि, विनय, उद्यम, और शास्त्र के प्रति राग (आत्यंतिक प्रेम) – ये पाँच पठन के लिए आवश्यक आंतरिक गुण हैं ।, आचार्य पुस्तक निवास सहाय वासो । I am doing Internet classes from home and it really helps me and I request to all that stay at home and stay safe. Thank you so much for all this shlokas. बाह्या इमे पठन पञ्चगुणा नराणाम् ॥ जो अपने बालक को पढाते नहि, ऐसी माता शत्रु समान और पित वैरी है; क्यों कि हंसो के बीच बगुले की भाँति, ऐसा मनुष्य विद्वानों की सभा में शोभा नहि देता ! बुढापा और मृत्यु आनेवाले नहि, ऐसा समजकर मनुष्य ने विद्या और धन प्राप्त करना; पर मृत्यु ने हमारे बाल पकडे हैं, यह समज़कर धर्माचरण करना ।, विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयो आभ्यन्तराः पठन सिद्धिकराः भवन्ति ॥ और विद्यार्थी को सुख कहाँ से ? विद्या अनुपम कीर्ति है; भाग्य का नाश होने पर वह आश्रय देती है, कामधेनु है, विरह में रति समान है, तीसरा नेत्र है, सत्कार का मंदिर है, कुल-महिमा है, बगैर रत्न का आभूषण है; इस लिए अन्य सब विषयों को छोडकर विद्या का अधिकारी बन ।, श्रियः प्रदुग्धे विपदो रुणद्धि यशांसि सूते मलिनं प्रमार्ष्टि । विद्या जैसा बंधु नहि, विद्या जैसा मित्र नहि, (और) विद्या जैसा अन्य कोई धन या सुख नहि ।, अनेकसंशयोच्छेदि परोक्षार्थस्य दर्शकम् । Aug 30, 2016 - This website is for sale! अजरामरवत् प्राज्ञः विद्यामर्थं च साधयेत् । विद्याविनयोपेतो हरति न चेतांसि कस्य मनुजस्य । Designed by Elegant Themes | Powered by WordPress, गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।, शरीरं चैव वाचं च बुद्धिन्द्रिय मनांसि च ।, गुकारस्त्वन्धकारस्तु रुकार स्तेज उच्यते ।, विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् ।, विनय फलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुत ज्ञानम् ।, एकमप्यक्षरं यस्तु गुरुः शिष्ये निवेदयेत् ।, दुग्धेन धेनुः कुसुमेन वल्ली शीलेन भार्या कमलेन तोयम् ।, योगीन्द्रः श्रुतिपारगः समरसाम्भोधौ निमग्नः सदा शान्ति क्षान्ति नितान्त दान्ति निपुणो धर्मैक निष्ठारतः ।, दृष्टान्तो नैव दृष्टस्त्रिभुवनजठरे सद्गुरोर्ज्ञानदातुः स्पर्शश्चेत्तत्र कलप्यः स नयति यदहो स्वहृतामश्मसारम् ।, पूर्णे तटाके तृषितः सदैव भूतेऽपि गेहे क्षुधितः स मूढः ।. हर्तृ र्न गोचरं याति दत्ता भवति विस्तृता । माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः । मूर्खहस्ते न दातव्यमेवं वदति पुस्तकम् ॥ शस्त्रविद्या और शास्त्रविद्या – ये दो प्राप्त करने योग्य विद्या हैं । इन में से पहली वृद्धावस्था में हास्यास्पद बनाती है, और दूसरी सदा आदर दिलाती है ।, सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् । स्वावलम्बः दृढाभ्यासः षडेते छात्र सद्गुणाः ॥ गृहीत एव केशेषु मृत्युना धर्ममाचरेत् ॥ मौनिनः कलहो नास्ति न भयं चास्ति जाग्रतः ॥ पञ्चैतानि विलिख्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिनः ॥ अनर्थज्ञोऽल्पकण्ठश्च षडेते पाठकाधमाः ॥ Happy Birthday wishes in Sanskrit | संस्कृत में जन्मदिनम् Best happy birthday Status in sanskrit language for whatsapp and facebook share for everyone. सद्गुरु तो अपने चरणों का आश्रय लेनेवाले शिष्य को अपने जैसा बना देता है; इसलिए गुरुदेव के लिए कोई उपमा नहीं है, गुरु तो अलौकिक है।, अर्थ- जो इन्सान गुरु मिलने के बावजुद प्रमादी (लापरवाह) रहे, वह मूर्ख पानी से भरे हुए सरोवर के पास होते हुए भी प्यासा, घर में अनाज होते हुए भी भूखा और कल्पवृक्ष के पास रहते हुए भी दरिद्र है।, Your email address will not be published. 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